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उस बड़े बंगले कि मालकिन ने
‘अम्मा’ को बुलाया
दीवाली कि सफाई में निकला
बहुत सा सामान थमाया
कुछ छोटे ,बड़े
मैले-मैले कपडे
कुछ चूहो कि कुतरी हुई चादरे
कुछ रंग उतरे परदे
कुछ चटके हुए बर्तन
कुछ कई रंगो कि चूड़िया
और कुछ टूटे हुए खिलौने………
अम्मा सब कपडे धो कर
साफ कर देगी
चादरों में पेबंद भर देगी
और पर्दो को काट…छाट
कर बराबर कर देगी…………….
जब कल दीवाली पर
वो बंगला रोशन हो जायेगा
तो उसके पुराने सामान से
मेरी खोली में भी उजाला भर जायेगा……..
दीवाली कि रात
उस बंगले के बच्चे ढेर से
पटाखे छुड़ाएंगे
कुछ न कुछ तो छूटने
से छूट जायेगे
फिर अगली सुबह मै
उन अधजले पटाखो को
चुन लाऊगी
अगले दिन ही सही
मै भी पटाखे छुटाऊगी…………….
फिर पन्द्रह दिन बाद
मालकिन देगी
कुछ आधे खाये हुए
सूखे- सूखे
मिठाई के डिब्बे
जिनमे हलकी सी सफेदी आजायेगी
पर अम्मा ……खुश होकर
वो भी घर ले आएगी
फिर क्या!उस शाम हमसब
कि फिर दीवाली मन जायेगी……….
और मालकिन कि बेटी ने
दीवाली पर पहनी थी जो
खुबसूरती ‘फ्रॉक’
देखना अगली दीवाली तक मुझे
ही मिल जायेगी………………………….!!!!!
(शुभ दीपावली)
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