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‘मिसरे’…ज़माने की बदली बयार के…………!!!

Anshu Gupta
Anshu Gupta
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हर तरफ जंग ,नफरते और खून खरावा
हम सुब ने भुलाये है दिन प्रीत …प्यार के……

इंशा ने जीत ली दुनिया की हर एक ‘शय’
एक चीज थी ‘जमीर’ जो लौटा है हार के……..

महबूबा ने उसकी माँगा है ‘आई-पेड’
भाते नहीं ‘औरत’ को अब ‘तौफे’ सिंगार के………..

अब छत है…न छज्जा …..न झरोखा ….न दरीचा
हर वक़्त ‘नेट’ ने मौके दिए ‘दीदार ‘ के……………

कमरों में कैद हो गया वो कीमती बचपन
गुजरता था जो गलियों में खेल ‘जीत-हार’ के……….

औरत ने हासिल कर लिया मर्द का ‘मुकाम’
और ‘मर्द’ भी खुश है ‘गृहस्थी’ संवार के…………….

कचरे में फेक देती है ..जो मिलते है उसे ‘रोज’
अब कौन ‘संजोता’ है ‘फूल’ पहली बार के…………………….

अब ‘क़र्ज़’ आदमी की ‘मजबूरी’ नहीं होता
‘हनीमून’ पर उडाता है वो रूपये ‘उधार’ के……………….

मेहनत और इमान का रस्ता बड़ा लम्बा
‘अमीर’ है बनना सभी को ‘लूट-मार’ के………………….

है ‘गुटखा’ बेचती सड़क पे उस शख्स की ‘अम्मा’
जो ‘बच्चो’ को दिलाता है.. ‘खिलौने’ हज़ार के………………

सब भूखी ही मर जाएगी ‘गाये’ और ‘भैसे’
चारा जो खा गाये…..’नेता’ बिहार के…………….

जाने कब अपने मुल्क की ‘आवो-हवा’ बदले
हम भी दिन गिनेगे अब ‘इंतजार’ के…………………………

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