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“Contest” हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?

Anshu Gupta
Anshu Gupta
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(दृश्य संख्या १ 🙂
गुड्डू ने स्कूल से आते ही मम्मी को बताया मम्मी ….१४ सेप को मेरे स्कूल में “स्पीच कम्पटीशन” है..टीचर ने मुझे भी “पार्टिसिपेट” करने को कहा है…ओह! गुड ,,,क्या “टॉपिक” है? “हिंदी डे” पर बोलना है माम….वो भी हिंदी में……पता नहीं स्कूल वाले भी क्या-क्या टोपिक्स निकल लेते है….अरे कुछ “साइंस” या “टेक्निकल” सब्जेक्ट पर इंग्लिश में भी तो कम्पटीशन रख सकते थे.(मम्मी ने मुह बना कर कहा)इस टॉपिक का क्या यूज है भला………….अरे मम्मी “डोंट यू नो?” १४ सेप को हिंदी डे होता है इसलिए…….ओके ओके ….आई नो ….!नेट से सर्च कर लेना……

(दृश्य संख्या २ एक सरकारी दफ्तर 🙂
एक सरकारी बाबू ने दफ्तर के चपरासी से पूछा ……क्यों रे बबुआ आज तो चाय …समोसा का इंतजाम होगा बे! क्यों बाबू जी आज क्या है?अरे आज उ हिंदी दिवस नहीं है….उसी चक्कर में….हाँ-हाँ होगा तो….लेकिन उस से पहले साहब का हिंदी में काम करने के लिए लम्बा चौड़ा भासन झेलना पड़ेगा तब जाके मिलेगा कही चाय …समोसा…..
मुह बनाता हुआ बाबू बोला “हम तो पीछे की कुर्सी पर पैर फैला कर सो लेगें भाई तब तक जब तक खाने की व्यवस्था न हो……..”वो तो बोल के चले जायेगे और कल से ही लिख कर भेजेगे वर्मा जी “प्लीज़ टाइप दिस लेटर इन इंग्लिश…..”तो क्या फायदा ..सब डिरामा बाजी है……

(दृश्य संख्या ३ नेता जी हिंदी दिवस 🙂
एक नेता जी को …हिंदी दिवस के दौरान ,हिंदी भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डालने को बुलाया गया,,,,,,,,नेता जी पहले से ही परेशान थे की क्या बोलूगा…….फिर भी अपने सहायक की मदद से उन्होंने एक दमदारलेख लिखबाया…..उनके श्रीमुख से हिंदी की गरिमा का बखान सुनने के लिए श्रोता भी खूब थे…….नेता जी पड़ रहे थे और बार बार तालियाँ गूँज रही थी …..फिर अंत में तो नेता जी को नारे लगवाने की आदत थी पर ये क्या……नारा तो लिखा ही नहीं…..चलो कोई बात नहीं मन से लगवा देता हूँ……
चलिए भाइयो सभी mere साथ बोलिए……………”ईस्ट और वेस्ट हिंदी इस डा बेस्ट……………”
ये दृश्य कपोलकल्पित नहीं है बल्कि …..देश में बिभिन्न स्थानों एवं स्तिथियों में हिंदी दिवस कुछ इसी तरह मनाया जा रहा है…लगभग ६० करोड़ देश्वाशी जो हिंदी बोलते व् समझते है इस गौरवशाली दिन को मानते तो है लेकिन किसी न किसी ‘मजबूरी’ में…………….
उनका हिंदी के प्रति कोई सम्मान भाव नहीं है…सच तो ये है आज है हिंदी दिवस ‘हिंदी भाषा के श्राद्ध पर्व’ के रूप मेमनाया जा रहा रहा ….जिसे प्रतिवर्ष सजे धजे मंचो से …भूले बिसरे साहित्यकारों द्वारा महिमा मंडित तो किया जाता है लेकिन हिंदी के व्यावहारिक ज्ञान एवं उपयोग की महत्ता दिन पर दिन गिरती जा रही है……………..!
स्कूली बच्चे …..शिक्षको के दवाव में,शिक्षक ……प्रधानाचार्य के दवाव में,प्रधानाचार्य…..प्रबंधतंत्र के दवाव में…….एवं प्रबंधतंत्र सरकारी दवावो में आकर हिंदी दिवस जैसे महान पर्व की खाना पूरी कर ही देते है…..लेकिन हिंदी उत्थान एवं विकास से इन सभी का कोई लेना देना नहीं है!
स्कूल में बच्चे के प्रवेश के समय बच्चे को तो छोडिये आज कल मत पिता का अंग्रेजी ज्ञान परखा जाता है …अगर वे इस स्कूल की कसौटी पर खरे नहीं उतरते तो उनका बच्चा भी प्रवेश से वंचित रह जाता है……..फिर जैसे तैसे प्रवेश हो भी गया अब शुद्द हिंदी भाषी परिवार का बच्चा आगरा क्लास में अंग्रेजी न बोल पाए तो सजा………उधर अगर हिंदी भाषी शिक्षको को प्रधानाचार्य जी रोज रोज बुला कर फटकारते है की भाई “इंग्लिश कन्वरशेषन पर जोर दीजिये ” क्योकि अगर बच्चा अंग्रेजी नहीं बोल पाया तो सोसाइटी की नज़र में स्कूल की शिक्षा बेकार…माँ बाप की नज़र में पैसा,समय और बच्चे का भविष्य सब बेकार……और इसके साथ हमारे कान्वेंट स्कूल के व्यापर में घाटा…….!

वही अगर हिंदी दिवस के कुछ सरकारी समारोह पर दृष्टि डाले तो बे वाकई शानदार होते है……बड़े बड़े खुबसूरत मंच…..नेता,मंत्री …सरकारी अफसर ,नौकरशाहों से उत्सव की शोभा बहुत बढ जाती है….सभी वर्ष में एक बार ही सही “शुद्ध हिंदी” में हिंदी का महिमा मंडन करते हुए नज़र आते है.हिंदी को मुख्य धारा में लेने का ….सरकारी काम काज में हिंदी प्रयोग का खूब जोर दिया जाता है….लेकिन इस दृश्य से परे सत्य तो ये है की….समाज में अंग्रेजी के बीज को बड़ा वृक्ष बनाने व उस वृक्षको पुष्पित ..पल्लवित करने में समाज के इस उच्च वर्ग का सब से बड़ा योगदान है……इन्होने ही बनाया अंग्रेजी को स्टेटस सिंबल …..ये मंच से तो हिंदी के व्यभारिक उपयोग की खूब शिफारिश करेगे…..लेकिन आज के युग में विश्वास मानिये की इनमे से किसी का बच्चा हिंदी माध्यम स्कूल में भी नहीं पड़ रहा होगा……समाज के इस वर्ग ने अन्ज्रेजी को इतना बढावा दिया की हिंदी सिर्फ गरीबो की भाषा बन कर रह गई……!
आज कंप्यूटर व इन्टरनेट युग में हिंदी दिवस का कुछ नया ही रूप सामने आया है….१४ सेप के आस पास हिंदी ब्लोगेर्स की बाड़ सी आ जाती ….अंग्रेजी को बेहद चाहने वाला ….युवा वर्ग भी हिंदी के प्रति रुझान दिखता है…हालाँकि ये रुझान बाड़ के पानी में अचानक पनपे कीड़े मकोडो जैसी है …जो पानी उतरते ही अपने आप कम हो जाती है…..!क्योकि इस युवा वर्ग से पूछिये की क्यों ये उच्च शिक्षा में अंग्रेजी के अधिपत्य का विरोध नहीं करते…?,क्यों अंग्रेजी में होने बाले सक्षात्कारो का सामूहिक बहिष्कार नहीं किया जाता….?,क्यों अपने ही किसी हिंदी भाषी मित्र का …..मिलकर उपहास करते है….क्यों फेसबुक पर कमेंट हमेशा इंग्लिश में ही देते है……देश के युवा वर्ग को हिंदी उत्थान में सजग भागीदारी करनी चाहिए …..क्योकि किसी भी देश का युवा वर्ग …क्रन्तिकारी परिवर्तन ला सकता है……युवा अपने तकनिकी कौशल,कार्य की दक्षता….विषय की प्रवीणता….पर ध्यान दे तो उन्हें अंग्रेजी की मोहताजी कभी नहीं करनी पड़ेगी….क्योकि अगर देश में केवल अंग्रेजी भाषियों को रोजगार मिलता होता….तो सभी हिंदी भाषी भूखे ही मर जाते…!

मेरा ये लेख अंग्रेजी का विरोध नहीं करता ….लेकिन अंग्रेजी का स्थान दाल में नमक के बराबर होना चाहिए…..नमक में दाल के बराबर नहीं और फिर अंग्रेजी भारत में जनसंपर्क एवं सरकारी तंत्र की भाषा तो बिलकुल नहीं हो सकती ….आज मेरे देश की बिडम्बना है की जो भाषा आजादी के जनांदोलन की भाषा थी …आज हिंदी दिवस जैसे पाखंडो की मोहताज हो गई है…….इसे रोकना होगा …वर्ना कल देश अंग्रेजो का गुलाम था….और कल अंग्रेजी का गुलाम हो जायेगा……………..!

हिंदी करे पुकार……………………..

न…पखवारे…..न आयोजन
न ….झूठा गुणगान चाहिए………………
न ….उत्सव….न..भाषण बाजी
न ….मिथ्या सम्मान चाहिए……………….
मुझ को तो बस अपने रखवालो
की ‘जिभ्या’ और ‘कलम’ पर
फिर से अपना स्थान चाहिए………………..
मुझ को बोलो,मुझ में समझो
और मुझ में लिखबाओ…………..
अपनी नई पीड़ी को मेरी उपयोगिता बतलाओ……………..
उनके मन में मेरे प्रति भी होना अब अभिमान चाहिए……………….
मैं जननी हूँ…मै माता हूँ
मैं तुमसब के अंतर्मन की सबसे पहली भाषा हूँ……
अंग्रेजी है घोर गुलामी
मै आजादी की परिभाषा हूँ………………..
अंग्रेजी की जंजीरों से छूटा हिन्दोस्तान चाहिए……………..
मेरे दम से ही दुनिया में अस्तित्व
तुमारा जिन्दा है………………………………
सरल,सहज मै तेरी अपनी
फिर तू क्यों मुझ से शर्मिंदा है………..
रे मानव! मुझ को अपना ले …गर तुझ को अपना मान चाहिए………
मुझ को तो बस अपने रखवालो
की ‘जिभ्या’ और ‘कलम’ पर
फिर से अपना स्थान चाहिए……………………………………..

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