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क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाइ जा सकती है? अगर हाँ, तो किस प्रकार? अगर नहीं तो, क्यों नहीं? Contest

Anshu Gupta
Anshu Gupta
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हम लाख ढिंढोरा पीट ले की हिंदी हमारी राजभाषा है मातृभाषा है…..हमारी प्राण वायु है….हिंदी का स्थान हमारे दिलो में समस्त भाषाओ से सर्वोपरि है ,लेकिन इन सभी बातो से परे आज वर्तमान युग का सत्य तो कुछ और ही है…आज वह भाषा जिस के कारन हम स्वतंत्र भारत में जन्मे है ,उस बूडी माँ की तरह हो गई है जो असमर्थ से घर के एक कोने में चारपाई पर पड़ी रहती है!!!!!

बेटे बाहर वालो के सामने अपनी माँ की देखभाल एवं मानसम्मान का पूरा दिखावा करते है…..लेकिन आज उनके जीवन में उस बूडी माँ की कोई महत्ता नहीं है….यहाँ माँ के पद (स्थान)में कोई कमी नहीं है वो परिवार की बड़ी है और रहेगी…… लेकिन आज संज्ञा हीन हो चली है!
कमोवेश यही स्तिथि आज के समाज में हिंदी भाषा की भी है……..भाई अब करे भी तो क्या करे?मजबूरी है हमारी……………………..
बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में हिंदी बोले तो सजा का नियम है ……इंटरव्यू हिंदी में दो तो बाहर का रास्ता दिखाया जाता है………
अंग्रेजी भाषी लोग ,,,हिंदी भाषियों की तुलना में अधिक तेज (स्मार्ट)माने जाते है केवल व्यक्तित्व उन्ही का होता है ….हिंदी भाषी तो “भैया जी”
होते है……डॉ अपना परचा हिंदी में नहीं लिखता …..दवाई पर प्रिंट प्राय अंग्रेजी में ही होता है…….देश की न्याय पालिका हिंदी में कार्य नहीं करती……संसद की कार्यवाही हिंदी में कम ही होती है…….यहाँ तक की हमारे प्रधान मंत्री जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी भी शुद्द हिंदी भाषी नहीं है …..लाल किले की प्राचीर से अक्सर राष्ट्र को अंग्रेजी में संबोधित किया जा चुका है…………….ये तो कुछ छोटे चुनिन्दा उदहारण थे जो आपके समक्ष प्रस्तुत किये,जबकि हिंदी की स्तिथि तो और दयनीय होती जा रही है…………तो बताइए हिंदी की “डिमांड” कहाँ है?
और फिर बाज़ार का तो यही नियम है की वही बिकता है जिसकी “डिमांड” होती है बाकी कुछ भी कितना अच्छा हो सब बेकार………….!
हिंदी के उत्थान के लिए हिंदी दिवस का आयोजन करना……समय समय पर हिंदी साहित्य से जुड़े लोगो को इक्हठा करना…..हिंदी लेखन व वाचन सम्वन्धी कार्यक्रम आयोजित करना ….हिंदी उत्थान के लिए किये गए सतही प्रयास हो सकते है लेकिन क्योकि समस्या जड़ो से जुडी है तो उपचार भी वही से शुरू हो………तो कारगर हो सकता है!

बैसे तो हिंदी को मुख्य धारा में लाना इतना सरल नहीं रह गया है जबकि हम लगभग अंग्रेजी के गुलाम हो ही चुके है लेकिन अगर समाज के बिभिन्न स्तरों से साझा प्रयास किया जाये तो निश्चित ही कुछ परिवर्तन लाया जा सकता है…….मै इसी संधर्भ में अपने कुछ सुझाब प्रस्तुत कर रही हूँ………………

१)हिंदी को मुख्य धारा में लाने के लिए सख्त कानून बने:-
हमारी फितरत ही कुछ ऐसी बन गई है की जब तक हमारे सर पर सख्त कानून का डंडा न पड़े हमें बात समझ नहीं आती …इसी लिए हमारी सरकार को चाहिए की हिंदी के मुख्य धारा में प्रयोग में लेन के लिए भी सख्त कानून बनाये जाये व इनका पालन न होने पर दंडात्मक कारवाही की जा जाये…क्यों की जब अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पड़ रहे छोटे-छोटे बच्चे हिंदी बोलने पर सजा खा सकते है तो ये आला अफसर अंग्रेजी के प्रयोग पर क्यों नहीं ?

२)प्राथमिक शिक्षा हिंदी में ही अनिवार्य:-देश में प्राथमिक शिक्षा की हिंदी में ही अनिवार्यता होनी चाहिए…..अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को पूर्णतया प्रतिबंधित कर देना चाहिए..जिससे दो लाभ होगे …पहला की अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की प्रभुता नहीं रहेगी समाज में अमीर गरीब सभी के बच्चे एक से स्कूल में पड़ेगे ,माँ बाप को गरीब होने के कारन ये दुःख नहीं होगा की वे अपने बच्चे को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में नहीं पड़ा पाए……….
दूसरा बच्चे की मानसिक व बौधिक शक्ति का विकास प्राकृतिक रूप से से होगा ….उस की जड़ो में हिंदी के लिए प्यार व सम्मान की भावना जन्म लेगी न की वह अंग्रेजी न बोल पाने के कारन खुद को हीन समझेगा…..और जब उनकी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण हो जाये वे थोड़े समझ दार हो जाये उन्हें साथ साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी देना चाहिए…... शिक्षको को बताना चाहिए की बच्चो वह जो डाल पर बैठा है “कौवा” है जिसे अंग्रेजी भाषा में “क्रो” कहते है……न की ये “दैट इस क्रो…………..”!

३) अंग्रेजी केवल एक विषय हो:-
बच्चो को अंग्रेजी केवल एक विषय मात्र की तरह पडनी चाहिए ….उन्हें बताना चाहिए की अंग्रेजी केवल एक विषय अथवा भाषा है…..मुख्य शिक्षा नहीं……….

४)शिक्षा में अंग्रेजी का अधिपत्य नहीं होना चाहिए………………

५)अब सवाल आता है रोजगार का ….सब से बड़ा रोड़ा तो यही अटका है…लाखो ,करोडो युवा केवल नौकरी इस लिए नहीं पाते क्योकि वे धाराप्रवाह अंग्रेजी नहीं बोल पाते…..अपने ही देश में उन के ज्ञान की गुणवत्ता कही मायने नहीं रखती …मायने रहता है तो अंग्रेजी बोल पाना…
हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के दौरान एक दो सवाल पूंछ कर ही बहार का रास्ता दिखा दिया जाता है भले ही कार्य से जुड़ा तकनीकी कौशल उन में कूट कूट कर क्यों न भरा हो? अगर नौकरियॊ में चयन के दौरान हिंदी भाषा की स्वतंत्रता हो तो निश्चित ही हमारे देश का युवा हिंदी की ओर झुकेगा…..युवा तमाम गली मुहल्लों में खुले छुटभैये “अंग्रेजी स्पीकिंग” केन्द्रों की ओर नहीं भागेगे………………!

५)हिंदी भाषा प्रतेक राज्य में अनिवार्य:- देश में प्रतिएक राज्य में उनकी क्षेत्रीय भाषा के अलावा हिंदी का ज्ञान भी देना चाहिए जिससे पूरे देश में हिंदी तो एकरूपता मिले ……अहिन्दीभाषी लोग भी हिंदी बोल सके व समझ सके ! और दूसरे राज्यों में भ्रमण के दौरान वे अंग्रेजी नहीं हिंदी में एक दुसरे से संवाद स्थापित करे………………………!

५)न्यायपालिका…ससंद,,,,एवं समस्त सरकारी तंत्र हिंदी में संचालित हो:-अरे भाई जब ऊँचे औधो पर बैठे लोग ही हिंदी की अवमानना करेगे …..तो कानून क्या आम आदमी के लिए बनेगा………समस्त अदालतों की कारवाही हिंदी में ही होनी चाहिए……सभी सांसदों ,विधायको…मंत्रियो से हिंदी के प्रयोग का आग्रह करना चाहिए!
प्रधानमंत्री ……राष्ट्रपति सभी देश के अन्दर विशेष अवसरों पर राष्ट्र को हिंदी में ही संबोधित करे…अंग्रेजी से अपनी बात कह कर आज भी देशवासियों को अंग्रेजो की गुलामी का अहसास न कराये….!

सोचिये अगर अंग्रेजी का इतना ही दबदबा होता …तो लाखो भारतीय साफ्टवेयर इंजीनिअर विदेशो में बड़ी बड़ी कंपनियों में कार्यरत है…अपने अंग्रेजी ज्ञान की बदौलत नहीं अपनी तकनिकी दक्षता के कारन…………….इतिहास साक्षी है की छोटे छोटे गाँव के प्राथमिक विद्यालयों के पड़े हुए बच्चे कहाँ नहीं पहुचे……..उन्होंने महान डॉक्टर,इंजीनिअर,वैज्ञानिक …….प्रशासनिक अधिकारियो के रूप में अपनी सफलता का परचम पूरे विश्व में लहराया……. मैं यहाँ अंग्रेजी का विरोध नहीं कर रही…लेकिन मूल तो हिंदी होना ही चाहिए!

केवल मैं ,आप……… या जागरण जंक्शन की “ब्लॉग शिरोमणि “प्रतियोगिता अकेले हिंदी को मुख्य धारा में नहीं ला सकती …..प्रयास साझा होगा तभी रंग लायेगा……………………………!!!!

धन्यवाद्……..

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