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‘वो’

Anshu Gupta
Anshu Gupta
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वो चाँदनी रातो मे नींद भर सोया
सुनहरी धूप मे रहा खोया
गुजरी सुहानी शाम
टकराते हुये जाम
उसके कई वफादार दोस्त
उड़वाते अंडे और गोस्त
यू तो होते उसे ढेरो काम
लेकिन वो घूमता फिरता
करता आराम
बेशर्मी और झूठ थे उसके हथियार
जिन से कर रहा था
वो अपना बेड़ा par
कर रहा था आज ऐश
कल को भूल कर
खुश था बहुत
जवानी के झूले मे झूल कर
वक़्त गुजरा,गुज़री जवानी
पीछे छोड़ गई
बेइज्जती और नाकामी
अब न दोस्त रहे न वो यार
बस सर पर था जिम्मेदारियो का भार
वो कोसता नसीब और भगवान
अपने पूर्व कर्मो से अंजान
कोई बताए उसे की जो फसल बोई नहीं
वो कैसे काटेगा?
नाकाम इंसान …नाकामी ही बाटेगा

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