Anshu Gupta
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हमने देखा,तुमने देखा………….।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने की उम्र सही
पर ईटे,पत्थर ढोता बचपन……।
न खेल खिलौनो की चाहत
न कुछ बनने की अभिलाषा
बस दो वक़्त की रोटी को
जूतो मे सुई चुभोता बचपन………….।
चौराहो पर फूल बेचता
कभी गाड़िया चमकाता
बस मे आइसक्रीम बेचने
दूर तलक दौड़ा जाता
कोने मे थक कर बैठा ,अपनी किस्मत पर रोता बचपन…………..।
बबलू, घर-घर अखबार बांटता
राजू ,चाय बनाता
मुन्नी झाड़ू पोछा करती
गुड्डू मालिक के पाव दबाता
फिर भी रोज गालिया खाता,आसू से नैन भिगोता बचपन…….।
बहुत बने कानून
पर भूख न रोकी जाए
कुछ पैसो की खातिर
बचपन बूढा होता जाए
ऐसी हालत देख के लगता,काश!कभी न होता बचपन…….।
हमने देखा,तुमने देखा………….।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने उम्र सही
पर ईटे,पत्थर ढोता बचपन……।
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